लेखनी प्रतियोगिता -16-Jul-2022
सम्हाले गोद में हमको ये सदा रहती है
ये मिट्टी भी कहीं कहीं से माँ लगती है।
कहीं पीली,कहीं काली, कहीं पर धूसर
कहीं बाग, कहीं खेत, कहीं पर ऊसर
हजारों रंग की ये साड़ियां लपेटे हुए
और आँचल में नगीने कई समेटे हुए
जहां देखो ये खुशियों का जहां लगती है
ये मिट्टी भी कहीं कहीं से माँ लगती है।
उड़ते परिंदों को भी आकाश कहाँ जमता है
सफर कोई भी हो मिट्टी पे आके थमता है
भरम का चश्मा नजरों से उतारो तो जरा
अपने जिस्म को होक शांत निहारो तो जरा
सिर से पैरों तक मिट्टी का मकान लगती है
कहीं कहीं से ये मिट्टी भी मां लगती है।।
Abhinav ji
17-Jul-2022 09:05 AM
Very nice👍
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Anshumandwivedi426
17-Jul-2022 10:50 AM
Thanks
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Swati chourasia
17-Jul-2022 07:16 AM
बहुत खूब 👌
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Anshumandwivedi426
17-Jul-2022 10:50 AM
सहृदय धन्यवाद
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surya
16-Jul-2022 06:35 PM
Nice
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Anshumandwivedi426
16-Jul-2022 07:03 PM
Thanks
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